कैसे चुने जाते हैं शंकराचार्य? अपने साथ हमेशा क्यों रखते हैं ये कपड़े से ढका हुआ दंड?

Shankaracharya

ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य Shankaracharya स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद इन दिनों काफी चर्चा में हैं. चर्चा में आने की वजह है केदारनाथ मंदिर से 228 किलो सोना गायब होने का दावा, दिल्ली में बन रहे केदारनाथ मंदिर का विरोध और कुछ बयान. राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने बयानों से शंकराचार्य फिर से खबरों में आ गए हैं. ऐसे में लोगों के मन में सवाल है कि शंकराचार्य कौन होते हैं और इनका क्या काम है? साथ ही लोग जानना चाहते हैं शंकराचार्य अपने साथ दंड और ध्वजा क्यों रखते हैं. तो जानते हैं इन सवालों का जवाब…

शंकराचार्य अपने साथ एक दंड रखते हैं.

कौन होते हैं शंकराचार्य Shankaracharya?

शंकराचार्य Shankaracharya के बारे में बताने से पहले आपको आदि शंकराचार्य Shankaracharya के बारे बताते हैं. दरअसल, आदि शंकराचार्य Shankaracharya एक हिंदू धर्मगुरु थे, जिनकी ज्ञान और धर्म की जानकारी की वजह से काफी ख्याति थी. कहा जाता है कि सनातन परंपरा के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य Shankaracharya का महान योगदान है.उन्हें अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और सनातन धर्म सुधारक माना जाता है. कहा जाता है कि वे काफी तेजस्वी थे और उन्होंने 20 साल का ज्ञान सिर्फ 2 साल में अर्जित कर लिए थे. साथ ही उन्होंने सनातन धर्म को लेकर काफी काम किया था.

The Life of Adi Shankaracharya - Online with Amma

फिर उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए. फिर उन चार मठों के जो प्रमुख हुए, उन्हें शंकराचार्य Shankaracharya कहा गया . ये चार मठ हैं उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का शृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ.  अब इन मठों के जो प्रमुख हैं, वो ही देश के चार शंकराचार्य Shankaracharya हैं. इनमें गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी हैं, जबकि शारदा मठ के शंकराचार्य Shankaracharya स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती हैं.

कैसे चुने जाते हैं शंकराचार्य Shankaracharya?

शंकराचार्य Shankaracharya बनने के लिए कुछ खास योग्यताओं को होना जरूरी है. जैसे शंकराचार्य बनने के लिए संन्यासी होना जरूरी है. संन्यास बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, अपना पिंडदान और रुद्राक्ष धारण करना बेहद जरूरी माना जाता है. वहीं, अगर इनके चयन की बात करें तो किसी भी शंकराचार्य की नियुक्ति गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार होती है. ये इसलिए होता है, क्योंकि आदि शंकराचार्य ने भी अपने चार शिष्यों को चार मठों का शंकराचार्य बनाया था.

ऐसे में हर शंकराचार्य Shankaracharya अपने मठ के शिष्य को शंकराचार्य Shankaracharya घोषित करते हैं. इसके साथ ही  शंकराचार्य पदवी के शंकराचार्यों Shankaracharya के के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की सहमति जरूरी होती है. इसके बाद शंकराचार्य बनते हैं.

क्या होता है काम?

शंकराचार्य की भूमिका सनातन धर्म में शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं. ऐसे में धर्म से जुड़े किसी विषय में शंका या विवाद होने की स्थिति में शंकराचार्य की सलाह आखिरी मानी जाती है और ये अपने अपने मठों के जुड़े सभी फैसले लेते हैं. शंकराचार्य का कहना है कि शंकराचार्य से अपेक्षा की जाती है कि जहां धर्म की बात हो वहां बिना किसी लोभ और दबाव में आए वह सच कह सके.

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अपने साथ क्यों रखते हैं दंड?

आपने शंकराचार्यों के पास एक दंड देखा होगा, ये दंड बताता है कि वे दंडी संन्यासी हैं. ये दंड उन्हें अपने गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के बाद मिलता है, जिसे विष्णु भगवान का प्रतीक माना जाता है. कहा जाता है कि इसमें शक्तियों को समाहित किया जाता है और संन्यासी हर रोज इसका तर्पण और अभिषेक करते हैं. ये दंड कई तरह के होते हैं और इनमें अलग-अलग गांठ के हिसाब से इन्हें बांटा जाता है. कुछ दंड में 6, कुछ में 8, 10, 12, 14 गांठ वाले दंड होते हैं. हर दंड का अलग नाम होता है, जिसमें सुदर्शन दंड, गोपाल दंड, नारायण दंड, वासुदेव दंड आदि शामिल है. इसकी पवित्रता के लिए इसे हमेशा  ढककर रखा जाता है.

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