केदारनाथ धाम में दीपावली पर आने वाले श्रद्धालुओं से केदार सभा के अध्यक्ष राजकुमार तिवारी ने खास अपील की है। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए सभी लोगों से अपील कि दीपावली पर अगर धाम में आएं तो आतिशबाजी न करें।
केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए तीन नवंबर को बंद होने हैं। ऐसे में कपाट बंद होने के दौरान भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस वर्ष अब तक यमुनोत्री में 6,93163, गंगोत्री में 7,93923, केदारनाथ में 14,73293 और बदरीनाथ धाम में 11, 95018 यात्रियों ने दर्शन किए हैं। जबकि बीते वर्ष 2023 में यमुनोत्री में 7,35244, गंगोत्री में 905174, केदारनाथ में 19,61025 और बदरीनाथ धाम में 18,39591 यात्री पहुंचे। जो बीते वर्ष के मुकाबले 12, 85637 कम हैं।
Kedarnath Yatra 2024: श्री केदारनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए 3 नवंबर को भाई दूज के दिन सुबह 8.30 बजे बंद किए जाएंगे. श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजय प्रसाद थपलीयाल ने खुद इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कपाट बंद होने के बाद भगवान केदारनाथ की चल-विग्रह डोली अपनी शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर प्रस्थान करेगी.
केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद भगवान केदारनाथ की चल-विग्रह डोली को श्रद्धालु कंधे पर उठाकर आगे बढ़ेंगे. उसी दिन रामपुर में
रात्रि विश्राम होगा. फिर 4 नवंबर को डोली रामपुर से प्रस्थान कर फाटा और नारायण कोटी होते हुए गुप्तकाशी पहुंचेगी. फिर यहां रात्रि
विश्राम किया जाएगा.
5 नवंबर की सुबह श्रद्धालु चल-विग्रह डोली को लेकर आगे बढ़ेंगे. इसके बाद चल-विग्रह डोली अपने शीतकालीन गद्दी स्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर (ऊखीमठ) पहुंचेगी. जहां भगवान केदारनाथ की डोली को परंपरागत उपासना के साथ गद्दी स्थल पर विराजित किया जाएगा.
सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक, कपाट बंद होने के बाद बाबा केदारनाथ उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मठ मंदिर के लिए रवाना होते हैं तो बाबा का रात्रि विश्राम भी तय है. पहली रात का पड़ाव रामपुर में होता है, जो लगभग 18 किलोमीटर नीचे है. बाबा की डोली को उखीमठ के युवा अपने कंधों पर लिए पैदल ही चलते हैं. बैंड साथ में होता है स्थानीय लोग नगाड़े ढोल दमाऊं की मधुर स्वर लहरी की गूंज के बीच साथ जय जयकार करते साथ लेकर चलते हैं. पूरी घाटी सुरों और नारों जयकारों से गुंजायमान हो जाती है. हर हर महादेव बम बम शंकर के जयकारों के साथ घाटी को गुंजायमान करते हुए बाबा की डोली नीचे उतरती है.
रास्ते में पड़ने वाले गांव के लोग जब उनके गांव से डोली गुजरती है तो वह डोली की पूजा करते हैं और साथ चल रहे भक्तों का स्वागत सत्कार करते हैं. भैरव घाटी जंगल चट्टी होते हुए बाबा की डोली गौरीकुंड पहुंचती है. यहां एक संक्षिप्त पड़ाव होता है. गौरीकुंड के स्थानीय लोग बाबा का स्वागत और पूजन करते हैं. साथ चल रहे लोगों का सत्कार होने के बाद डोली सोनप्रयाग होते हुए रामपुर पहुंचती है. वहां परंपरागत रूप से बाबा केदारनाथ का रात्रि विश्राम होता है.