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मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra)जी स्तुति@Ultimate Spiritual all in 1 amazing guide

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी स्तुति@1 आद्यात्मिक यात्रा amazing guide

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) जी साराँश(ABOUT SHRI RAM)

हिंदू धर्म के अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र (Shri Ramchandra) का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन हुआ था। हमारे देश में इस दिन मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के जन्म उत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है, कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम(Shri Ramchandra) की पूजा अर्चना करने से सभी विघ्न-बाधाएं दूर होने के साथ-साथ मन शांत होता है। लोग इस दिन मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र की पूजा अर्चना करते है। शास्त्रों के अनुसार रामनवमी की दिन मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) की आरती के बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है।

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी स्तुति-आद्यात्मिक यात्रा@amazing guide
Shri Ramchandra Ji

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) जी स्तुति

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कन्जारुणम ॥1॥

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम ।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरम् ॥2॥

भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम् ।
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथ नन्दनम ॥3॥

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धुषणं ॥4॥

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम् ।
मम् हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम् ॥5॥

छंद :

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरों ।
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो ॥6॥

एही भांती गौरी असीस सुनि सिय सहित हिय हरषी अली ।
तुलसी भवानी पूजि पूनि पूनि मुदित मन मंदिर चली ॥7॥

 

॥सोरठा॥

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥

 

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) चरित्र वर्णन

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra)जी स्तुति@Amazing Spiritual guide
Maryada Purushotamm Shri Ramchandra Ji

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के चरित्र का वर्णन करना जो धर्मात्मा,सत्यप्रतिज्ञ  है मेरे लिए कदापि संभव नही है। राजीवनेत्रं, कमलनयन मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र के चरित्र का वर्णन करने में तो बड़े बड़े विद्वान दांतों तले अंगुली दबा लेते है मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र वर्णन मुझ जैसे तुच्छ प्राणी किस प्रकार कर सकता है। उनका जीवन धरती में उनका राम रूप में अवतार प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।

 

 

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के जीवन की प्रमुख घटनाएं

 

1.बालपन और सीता-स्वयंवर

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी स्तुति-आद्यात्मिक यात्रा@amazing guide
Sita Mata Swayamvar Image
  • मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) बचपन से ही शान्‍त स्‍वभाव के वीर पुरूष थे। उन्‍होंने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया था। इसी कारण उन्‍हें मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के नाम से जाना जाता है। उनका राज्य न्‍यायप्रिय और खुशहाल माना जाता था। इसलिए भारत में जब भी सुराज (अच्छे राज) की बात होती है तो मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) या रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। धर्म के मार्ग पर चलने वाले राम(Shri Ramchandra) ने अपने तीनों भाइयों के साथ गुरू वशिष्‍ठ से शिक्षा प्राप्‍त की।
  • किशोरावस्था में गुरु विश्वामित्र उन्‍हें वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को समाप्त करने के लिए साथ ले गये। राम(Shri Ramchandra) के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी इस कार्य में उनके साथ थे। ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र, जो ब्रह्म ऋषि बनने से पहले राजा विश्वरथ थे, उनकी तपोभूमि बिहार का बक्सर जिला है।
  • ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र वेदमाता गायत्री के प्रथम उपासक हैं, वेदों का महान गायत्री मंत्र सबसे पहले ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र के ही श्रीमुख से निकला था। कालांतर में विश्वामित्रजी की तपोभूमि राक्षसों से आक्रांत हो गई। ताड़का नामक राक्षसी विश्वामित्रजी की तपोभूमि में निवास करने लगी थी तथा अपनी राक्षसी सेना के साथ बक्सर के लोगों को कष्ट दिया करती थी।
  • समय आने पर विश्वामित्रजी के निर्देशन मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के द्वारा वहीं पर उसका वध हुआ। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र ने उस समय ताड़का नामक राक्षसी को मारा तथा मारीच को पलायन के लिए मजबूर किया। इस दौरान ही गुरु विश्‍वामित्र उन्हें [[]] ले गये। वहां के विदेह राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक स्वयंवर समारोह आयोजित किया था।
  • जहां भगवान शिव का एक धनुष था जिसकी प्रत्‍यंचा चढ़ाने वाले शूरवीर से सीता जी का विवाह किया जाना था। बहुत सारे राजा महाराजा उस समारोह में पधारे थे। जब बहुत से राजा प्रयत्न करने के बाद भी धनुष पर प्रत्‍यंचा चढ़ाना तो दूर उसे उठा तक नहीं सके, तब विश्‍वामित्र जी की आज्ञा पाकर मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) ने धनुष उठा कर प्रत्‍यंचा चढ़ाने का प्रयत्न किया।
  • मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra), उनकी प्रत्‍यंचा चढ़ाने के प्रयत्न में वह महान धनुष घोर ध्‍‍वनि करते हुए टूट गया। महर्षि परशुराम ने जब इस घोर ध्‍वनि को सुना तो वे वहां आ गये और अपने गुरू (शिव) का धनुष टूटने पर रोष व्‍यक्‍त करने लगे। लक्ष्‍मण जी उग्र स्‍वभाव के थे। उनका विवाद परशुराम जी से हुआ। (वाल्मिकी रामायण में ऐसा प्रसंग नहीं मिलता है।) तब मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) ने बीच-बचाव किया। इस प्रकार सीता का विवाह मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) से हुआ और परशुराम सहित समस्‍त लोगों ने आशीर्वाद दिया।

 

2. वनवास

  • मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा।

  • पिता के वचन की रक्षा के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदाहरण देते हुए पति के साथ वन (वनवास) जाना उचित समझा। भाई लक्ष्मण ने भी मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के साथ चौदह वर्ष वन में बिताए। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आए। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया।
  • जब मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र वनवासी थे तभी उनकी पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम(Shri Ramchandra) के सारे कार्य पूरे कराये। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) ने हनुमानसुग्रीव आदि वानर जाति के महापुरुषों की सहायता से सीता को ढूंंढा। समुद्र में पुल बना कर लंका पहुँचे तथा रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता जी को वापस ले कर आये। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया।राजा दशरथ के तीन रानियां थीं: कौशल्यासुमित्रा और कैकेयी। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) कौशल्या के पुत्र थे, सुमित्रा के दो पुत्र, लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे और कैकेयी के पुत्र भरत थे। राज्य नियमों के अनुसार राजा का ज्येष्ठ पुत्र ही राजा बनने का पात्र होता है अत: मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र का अयोध्या का राजा बनना निश्चित था।
  • कैकेयी जिन्होंने दो बार राजा दशरथ की जान बचाई थी और दशरथ ने उन्हें यह वर दिया था कि वो जीवन के किसी भी पल उनसे दो वर मांग सकती हैं। राम को राजा बनते हुए और भविष्य को देखते हुए कैकेयी चाहती थी कि उनका पुत्र भरत ही अयोध्या का राजा बने, इसलिए उन्होंने राजा दशरथ द्वारा मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र को १४ वर्ष का वनवास दिलाया और अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राज्य मांग लिया। वचनों में बंधे राजा दशरथ को विवश होकर यह स्वीकार करना पड़ा। श्री राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया। श्री राम की पत्नी देवी सीता और उनके भाई लक्ष्मण जी भी वनवास गये थे।

3. सीता जी का अपहरण

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी स्तुति-आद्यात्मिक यात्रा@amazing guide
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  • वनवास के समय, रावण ने सीता जी का हरण किया था। रावण एक राक्षस तथा लंका का राजा था। रामायण के अनुसार, जब मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र, सीता और लक्ष्मण कुटिया में थे तब एक स्वर्णिम हिरण की वाणी सुनकर, पर्णकुटी के निकट उस स्वर्ण मृग को देखकर देवी सीता व्याकुल हो गयीं। देवी सीता ने जैसे ही उस सुन्दर हिरण को पकड़ना चाहा वह हिरण या मृग घनघोर वन की ओर भाग गया।
  • वास्तविकता में यह असुरों द्वारा किया जा रहा एक षडयंत्र था ताकि देवी सीता का अपहरण हो सके। वह स्वर्णमृग या सुनहरा हिरण राक्षसराज रावण का मामा मारीच था। उसने रावण के कहने पर ही सुनहरे हिरण का रूप धारण किया था ताकि वो योजना अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र – लक्ष्मण को सीता जी से दूर कर सकें और सीता जी का अपहरण हो सके। उधर षडयन्त्र से अनजान सीता जी उसे देख कर मोहित हो गईं और रामचंद्र जी से उस स्वर्ण हिरण को जीवित एवं सुरक्षित पकड़ने करने का अनुरोध किया ताकि उस अद्भुत सुन्दर हिरण को अयोध्या लौटने पर वहां ले जा कर पाल सकें ।
  • मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) जी अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने चल पड़े और लक्ष्मण जी से सीता की रक्षा करने को कहा। कपटी मारीच राम जी को बहुत दूर ले गया। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र को दूर ले जाकर मारीच ने ज़ोर से “हे सीता ! हे लक्ष्मण !” की आवाज़ लगानी प्रारंभ कर दी ताकि उस आवाज़ को सुन कर सीता जी चिन्तित हो जाएं और लक्ष्मण को राम के पास जाने को कहें, जिससे रावण सीता जी का हरण सरलता पूर्वक कर सके । इस प्रकार छल या धोखे का अनुमान लगते ही अवसर पाकर श्री राम ने तीर चलाया और उस स्वर्णिम हिरण का रूप धरे राक्षस मारीच का वध कर दिया ।
  • दूसरी ओर सीता जी मारीच द्वारा लगाए अपने तथा लक्ष्मण के नाम के ध्वनियों को सुन कर अत्यंत चिन्तित हो गईं तथा किसी प्रकार के अनहोनी को समीप जानकर लक्ष्मण जी को मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) के पास जाने को कहने लगीं। लक्ष्मण जी राक्षसों के छल – कपट को समझते थे इसलिए लक्ष्मण जी देवी सीता को असुरक्षित अकेला छोड़कर जाना नहीं चाहते थे, पर देवी सीता द्वारा बलपूर्वक अनुरोध करने पर लक्ष्मण जी अपनी भाभी की बातों को अस्वीकार नहीं कर सके।
  • वन में जाने से पहले सीता जी की रक्षा के लिए लक्ष्मण जी ने अपने बाण से एक रेखा खींची तथा सीता जी से निवेदन किया कि वे किसी भी परिस्थिति में इस रेखा का उल्लंघन नहीं करें, यह रेखा मंत्र के उच्चारण पूर्वक खिंची गई है इसलिए इस रेखा को लांघ कर कोई भी इसके अन्दर नहीं आ पाएगा। लक्ष्मण जी ने देवी सीता की रक्षा के लिए जो अभिमंत्रित रेखा अपने बाण के द्वारा खिंची थी वह लक्ष्मण रेखा के नाम से प्रसिद्ध है।
  • लक्ष्मण जी के घोर वन में प्रवेश करते ही तथा देवी सीता को अकेला पाकर पहले से षडयंत्र पूर्वक घात लगाकर बैठे रावण को सीता जी के अपहरण का सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया। रावण शीघ्र ही राम – लक्ष्मण – सीता के निवास स्थान उस पर्णकुटी या कुटिया में जहां परिस्थिति वश देवी सीता इस समय अकेली थीं, आ गया। उसने साधु का वेष धारण कर रखा था । पहले तो उसने उस सुरक्षित कुटिया में सीधे घुसने का प्रयास किया लेकिन लक्ष्मण रेखा खींचे होने के कारण वह कुटिया के अंदर जहां देवी सीता विद्यमान थीं, नहीं घुस सका।
  • तब उसने दूसरा उपाय अपनाया, साधु का वेष तो उसने धारण किया हुआ ही था, सो वह कुटिया बाहरी द्वार पर खड़े होकर “भिक्षाम् देही – भिक्षाम् देही” का उद्घोष करने लगा। इस वाणी को सुन कर देवी सीता कुटिया के बाहर निकलीं (लक्ष्मण रेखा के उल्लंघन किए बिना)। द्वार पर साधु को आया देख कर वो कुटिया के चौखट से ही (लक्ष्मण रेखा के भीतर से ही) उसे अन्न – फल आदि का दान देने लगीं। तब धूर्त रावण ने सीता जी को लक्ष्मण रेखा से बाहर लाने के लिए स्वयं के भूखे – प्यासे होने की बात बोल कर भोजन की मांग की।
  • आर्यावर्त की परंपरा के अनुसार द्वार पर आये भिक्षुक एवं भूखे को खाली हाथ नहीं लौटाने की बात सोच कर वो भोजन – जल आदि लेकर भूल वश लक्ष्मण रेखा के बाहर निकल गई। जैसे ही सीता जी लक्ष्मण रेखा के बाहर हुई, घात लगाए रावण ने झटपट उनका अपहरण कर लिया। रावण सीता जी को पुष्पक विमान में बल पूर्वक बैठाकर ले जाने लगा।
  • पुष्पक विमान में अपहृत होकर जाते समय सीता जी ने अत्यन्त उच्च स्वर में मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) और लक्ष्मण जी को पुकारा तथा अपनी सुरक्षा की गुहार लगायी। इस ऊंचे ध्वनि को सुनकर जटायु नामक एक विशाल गिद्ध पक्षी जो मनुष्यों के समान स्पष्ट वाणी में बोल सकता था तथा पूर्व काल में राजा दशरथ का परम मित्र था, वन प्रदेश को छोड़कर आकाश मार्ग में उड़ कर पहुंचा। जटायु देखता है कि अधर्मी रावण एक सुन्दर युवती को अपहरण कर लेकर जा रहा है तथा वह युवती अपनी सुरक्षा की गुहार लगा रही है।
  • यह अन्याय देख कर जटायु रावण को चुनौती देता है तथा उस युवती को छोड़ देने की चेतावनी देता है लेकिन अहंकारी रावण भला कहां मानने वाला था सो रावण और जटायु में आकाश मार्ग में ही युद्ध छिड़ जाता है। बलशाली रावण अपने अमोघ खड्ग से जटायु के दोनों पंख काट देता है जिससे जटायु नि:सहाय हो कर पृथ्वी पर गिर जाता है। रावण पुष्पक विमान में सीता जी को लेकर आगे बढ़ने लगता है।
  • सीता जी ने जब देखा कि उनकी रक्षा करने के लिए आए विशाल गिद्ध पक्षी जो मनुष्यों की भांति बोल सकता था, रावण के खड्ग प्रहार करने से धराशायी हो गया है तब पुष्पक विमान में आकाशमार्ग अथवा वायुमार्ग से जाते समय सीता जी अपने आभूषण / गहने को उतार कर नीचे धरती पर फेंकने लगीं।
  • मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra), अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता की खोज में दर-दर भटक रहे थे। तब वे हनुमान और सुग्रीव नामक दो वानरों से मिले। हनुमान, राम के सबसे बड़े भक्त बने।

रावण का वध

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी स्तुति-आद्यात्मिक यात्रा@amazing guide
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रामायण में सीता के खोज में सीलोन या लंका या श्रीलंका जाने के लिए 48 किलोमीटर लम्बे 3 किलोमीटर चोड़े पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको रामसेतु कहते हैं।

सीता को को पुनः प्राप्त करने के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) ने हनुमान, विभीषण और वानर सेना की सहायता से रावण के सभी बंधु-बांधवों और उसके वंशजों को पराजित किया तथा लौटते समय विभीषण को लंका का राजा बनाकर अच्छे शासक बनने के लिए मार्गदर्शन किया।

अयोध्या वापसी

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। राम, सीता, लक्षमण और कुछ वानर जन पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर प्रस्थान किये । वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा। और अधिक जानकारी के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं

FAQs:

प्रश्न 1.  मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र (Shri Ramchandra)भगवान असली में कैसे दिखते थे?

उत्तर: चेहरा चंद्रमा के समान सौम्य, कांतिवाला कोमल और सुंदर था। उनकी आंखे बड़ी और कमल के समान थी। उन्नत नाक यानी चेहरे के अनुरुप सुडोल और बड़ी नाक थी। उनके होंठों का रंग उगते हुए सूर्य की तरह लाल था और दाेनों होंठ समान थे

प्रश्न 2. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) भगवान में कौन कौन से गुण थे?

उत्तर: मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र भगवान  श्रेष्ठ राजा थे. उन्होंने मर्यादा, करुणा, दया, सत्य, सदाचार और धर्म के मार्ग पर चलते हुए राज किया. इस कारण उन्हें आदर्श पुरुष और मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है.

प्रश्न 3. क्या मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र 11000 साल तक जीवित रहे?

उत्तर: उपरोक्त मान से अनुमानित रूप से भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र का जन्म द्वापर के 864000 + कलियुग के 5121 वर्ष = 869121 वर्ष अर्थात 8 लाख 69 हजार 121 वर्ष हो गए हैं प्रभु श्रीराम को हुए। कहते हैं कि वे 11 हजार वर्षों तक जिंदा वर्तमान रहे

प्रश्न 4. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) जी की कितनी पत्नियां थी?

उत्तर: मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र  ने केवल एक शादी की थी, और उनकी अर्धागनी माता सीता थी।

प्रश्न 5. सीता के मरने के बाद राम का क्या हुआ?

उत्तर: मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) अपने भाइयों की मदद से अयोध्या पर शासन करते रहे और उन्होंने लव और कुश दोनों को माता और पिता के रूप में पाला। पृथ्वी पर अपनी लीला पूरी करने के बाद भगवान राम ने सरयू नदी में जल समाधि ले ली। मूल रामायण कोशल साम्राज्य के राजा के रूप में मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र के राज्याभिषेक के साथ समाप्त होती है।

प्रश्न 6. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) राम को क्या पसंद है?

उत्तर: मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र हमेशा आम लोगों के प्रति सहानुभूति रखते थे और उनके साथ व्यवहार में न्यायपूर्ण थे। वह अपनी प्रजा के प्रति प्रेम के लिए जाने जाते थे और हमेशा उनके कल्याण को पहले स्थान पर रखते थे। निस्संदेह, अपने भाई और सीता के प्रति उनका प्रेम पौराणिक है।

प्रश्न 7. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) की मृत्यु के समय उनकी आयु कितनी थी?

उत्तर: जब उनकी मृत्यु हुई तब उनकी आयु 12,76,000 वर्ष थी।

प्रश्न 8. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) भगवान किसका अवतार थे?

उत्तर: राम – वाल्मीकि की रामायण के अनुसार, राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र राम थे, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार बताया जाता है। भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र का विवाह राजा जनक की पुत्री सीता से हुआ था। सीता को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।

प्रश्न 9. भगवान राम(Shri Ramchandra) ने 14 साल कहां बिताए थे?

उत्तर: राम अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के लिए वनवास के लिए पंचवटी (वर्तमान) नासिक गए थे। उन्हें उनकी सौतेली माँ कैकेयी ने वहाँ जाने के लिए मजबूर किया था क्योंकि वह चाहती थीं कि उनके पिता दशरथ के शासन के बाद उनके पुत्र भरत अयोध्या के राजा बनें।

प्रश्न 10. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) पृथ्वी पर कितने समय तक रहे?

उत्तर: मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र 11 हजार वर्षों तक पृथ्वी पर रहे. Lord Rama Story: हिंदू धर्म श्रीराम की व्यापक तौर पर आराधना करते हैं. श्रीराम भगवान (विष्‍णु) का मनुष्‍यावतार थे, जो त्रेतायुग में पृथ्वी पर अवतरित हुए. वह यहां 11 हजार वर्षों तक रहे.

प्रश्न 11. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) का मामा गांव कौन सा है?

उत्तर: आपको बता दें कि चंदखुरी भगवान राम का ननिहाल है. चंदखुरी श्री रामचन्द्र का मामा गांव है. रामलला को छत्तीसगढ़ में भांचा (भांजा) मानकर पूजा जाता है और जब बरसों-बरस के इंतजार के बाद भगवान राम के भव्य मंदिर की आधारशिला रखी जा रही है तो रामलला के मामा गांव के लोग भी बेहद खुश हैं.

प्रश्न 12. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) ने रावण को कितने वर्ष की उम्र में मारा था?

उत्तर: 51 वर्ष की आयु में मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र 40,000 वर्ष के रावण का वध किया।

प्रश्न 13. मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र(Shri Ramchandra) की बहन कितनी थी?

उत्तर: मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। हम यहां आपको शांता के बारे में बताएंगे। दक्षिण भारत की रामायण के अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं।

प्रश्न 14. राम शब्द का क्या अर्थ होता है?

उत्तर: राम का अर्थ है ‘प्रकाश’। किरण एवं आभा (कांति) जैसे शब्दों के मूल में राम है। ‘रा’ का अर्थ है आभा और ‘म’ का अर्थ है मैं; मेरा और मैं स्वयं। राम का अर्थ है मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश।

 

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