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“Maa Chandraghanta Day-3:आकाशीय सौन्दर्य का प्रतीक”

Maa Chandraghanta माँ चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा( Maa Chandraghanta) की पूजा करें-:

नवरात्रि हिन्दू धर्म में माँ दुर्गा की आराधना का महत्वपूर्ण त्योहार है और यह पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि नौ दिनों तक चलता है और इसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जो अलग-अलग शक्तियों का प्रतीक हैं – जैसे कि शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, वीरमाता, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, और सिद्धिदात्री। नवरात्रि का महत्व है क्योंकि इसके माध्यम से लोग माँ दुर्गा के शक्तिशाली दिव्य रूप की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक और मानसिक प्रगति में मदद मिलती है। आइए जानते हैं माँ दुर्गा के तीसरे स्वरूप माँ चंद्रघंटा के बारे में।

माँ चंद्रघंटा( Maa Chandraghanta)की उत्पत्ति और महिषासुर दानों का अंत -:

 प्राचीन समय मे देवों और असुरों के बीच लम्बे समय तक युद्ध चला। असरो का राजा महिषासुर था और देवताओं के स्वामी देवराज इंद्र थे। महिषासुर ने देवताओं पर विजय प्राप्त करके देवराज इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और देवलोक का राजा बन गया। इसे देख कर सभी देवता चिंतित होगये। और सहयता के लिए त्रिदेवों ब्रह्मा,विष्णु और महेश के पास गए। देवताओं ने बतया की महिषासुर ने इंद्र,चंद्र,अग्नि,वायु आदि सभी देवताओ के अधिकार छीन लिए। और उन्हें बंधक बना कर स्वयं देवलोक का राजा बन गया। ये सुनकर ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों को अत्याधिक क्रोध आया और उनके क्रोध से निकली हुई ऊर्जा से वहाँ एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवन विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवताओ ने भी माता के हाथो मे अस्त्र सस्त्र सज़ा दिए। इसी प्रकार इंद्र ने भी अपना वजर और ऐरावत हाथी से उतार कर एक घंटा दिया ,तभी उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। अब देवी चंद्रघंटा महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थी। उसके पश्चात देवी और महशहूर के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमे महिषासुर की हार हुई और देवी ने महिषासुर समेत कई बड़े दैत्यों का संघार कर दिया। इस तरह माता ने सभी देवताओं को महिषासुर के अत्याचार से मुक्त कर दिया।

माँ चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) की कथा भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि जब हम अन्याय और दुख का सामना करते हैं, तो हमें माँ दुर्गा की ओर बढ़ना चाहिए और उनकी शरण में जाना चाहिए। माँ चंद्रघंटा ने अपनी ताकत का उपयोग करके दुष्ट असुरों को पराजित किया और धर्म की रक्षा की। इसका संदेश है कि हमें भी बुराई के खिलाफ उत्तराधिकारी बनना चाहिए और सच्चे धर्म का पालन करना चाहिए।

माँ चंद्रघंटा(Maa Chandraghanta)के दस हाथो का राज-:

दस दुश्मन हमें संसार से बँधे रखते है और आत्मा को परमात्मा से मिलने से रोकते है वो है काम, क्रोध, लोभ,मोह, मध , ईर्षा , बुद्धि , मन , चित ,और अहंकार। माँ चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) के दस हाथो मे अस्त्र,सस्त्र,जपमाला और कमंडल है। इन दस अस्त्र सस्त्रो से हम इन दस दुश्मनो को मारकर मोक्ष प्राप्त कर सकते है। यही माँ चंद्रघंटा(Maa Chandraghanta) के दस हाथो का राज है। 

माँ चंद्रघंटा के आदर्श गुण| Ideal qualities of Maa Chandraghanta|

दिव्य गुणों का प्रतीक: सिंह पर सवार माँ चंद्रघंटा का स्वरूप मनमोहक एवं मनमोहक है। उनका स्वरूप शक्ति और साहस का प्रतीक है।

  1. धैर्य(Patience): देवी चंद्रघंटा का धैर्य और संयम उनके आदर्श गुण हैं। उन्होंने युद्ध के बीच धैर्य और साहस का प्रतीकित किया और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।
  2. साहस(Bravery): देवीचंद्रघंटा का साहस और वीरता उनके रूप का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे महिषासुर के खिलाफ साहसपूर्वक उतरीं और उसे पराजित किया।
  3. ध्यान(Attention): देवी चंद्रघंटा ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए आत्मा के साथ ध्यान का महत्व समझा।
  4. आध्यात्मिकता(Spirituality): देवी चंद्रघंटा का आदर्श आध्यात्मिकता की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रमोट करता है, क्योंकि उन्होंने युद्ध के बीच आध्यात्मिक साधना की।

माँ चंद्रघंटा की पूजा से आध्यात्मिक लाभ | Spiritual benefits of worshiping Goddess Chandraghanta |

माँ चंद्रघंटा(Maa Chandraghanta) की पूजा से वीरता, निर्भिक्ता के साथ सौम्यता का पराशर होता है और भक्त के जीवन मे उन्नति और खुशहाली आती है।

माँ चंद्रघंटा(Maa Chandraghanta)को प्रसन्न करने की विधि-:

माँ चंद्रघंटा को प्रसन्न करके भक्त अपने सभी पापों और बाधाओं से मुक्त हो सकते हैं।। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निरभिक हो जाता है। देवी चंद्रघंटा की पूजा शास्त्रीय विधि-विधान को अपनाते हुए करनी चाइये।शारारिक शुद्धता के साथ मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाइये। इस दिन माता की पूजा भिन भिन प्रकार के शुगन्धित पुष्पों तथा अनेक प्रकार के नैवैद्यों व इतरो से करने का विधान होता है। जिससे भक्तों  को मनचाहें फलो  की प्राप्ति होती है। और शरीर मे उत्पन पीड़ा और कस्टो का अंत होता है। पूजा व क्षमा प्राथना के बाद माँ को प्रणाम करते हुए पूजा और आराधना को माता को अर्पण कर देना चाइये। इस दिन सबसे पहले कलश और उसमे उपस्थित देवी देवताओ नवग्रहों एवं ग्राम व नगर देवता की पूजा आराधना करे। फिर माता के परिवार के देवता गणेश ,लक्ष्मी, कार्तिके , देवी सरस्वती की पूजा करे फिर देवी चंद्रघंटा की पूजा और आराधना करे। माता की चौकी पर माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करे तत्पश्चात गंगाजल या गौमूत्र से शुद्धिकरण करे।  चौकी पर चांदी , तांबे या मिट्टी के घड़े मे जल भरकर उसपर नारियल रखकर कलश की स्थापना करे। इसके बाद पूजन का संकल्प करे और वैधिक मंत्रो द्वारा माँ चंद्रघंटा सहित सभी स्थापित देवताओ की पूजा करे। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजा सम्पन करे।

देवी चंद्रघंटा का मंत्र (Devi Chandraghanta Ka Mantra)

|| स्तुति ||

या देवी सर्वभूतेषु, मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |

|| मंत्र ||

|| ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः ||

|| प्रार्थना ||

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||

|| ध्यान ||

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |

सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम् ||

मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम् |

खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम् ||

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम् |

मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम ||

प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम् |

कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम् ||

|| स्रोत्र ||

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम् |

अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ||

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम् |

धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ||

नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम् |

सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ||

|| कवच ||

रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने |

श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम् ||

बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम् |

स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम ||

कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च |

न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम् ||

माँ चंद्रघंटा आरती (Maa Chandraghanta Aarti) -:

                 || ॐ श्री गणेशाय नमः ||
जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम | पूर्ण कीजो मेरे काम ||
चन्द्र समाज तू शीतल दाती | चन्द्र तेज किरणों में समाती ||
मन की मालक मन भाती हो | चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो ||
सुन्दर भाव को लाने वाली | हर संकट में बचाने वाली ||
हर बुधवार को तुझे ध्याये | श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए ||
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए | शीश झुका कहे मन की बाता ||
पूर्ण आस करो जगत दाता | कांचीपुर स्थान तुम्हारा ||
कर्नाटिका में मान तुम्हारा | नाम तेरा रटू महारानी ||
भक्त की रक्षा करो भवानी | जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम |
पूर्ण कीजो मेरे काम ||

संक्षेप में:

इस दिन का महत्व भी अत्यधिक है और पूजा के दौरान विशेष मान्यता भरे रीति-रिवाज़ अपनाए जाते हैं। माता चंद्रघंटा का आगमन इस दिन होता है, और इसे भक्ति और आदर के साथ मनाना चाहिए। इस दिन के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए ध्यानपूर्वक और भक्ति भाव से मां चंद्रघंटा की पूजा करना उत्तम होता है।

Author – Yogita Negi

 

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