एकादशी का महत्व
एकादशी, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, हर महीने की ग्यारही तिथि को मनाया जाता है। व्रत, जिसका शाब्दिक अर्थ है “ग्यारह”, भगवान विष्णु को समर्पित है। भक्तगण इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके चरणों में भक्ति और समर्पण का भाव व्यक्त करते हैं।
एकादशी का पावन व्रत कई तरह से मनाया जाता है और व्रती अन्न, दान और पुण्य काम करते हैं। यह दिन है जब व्रती लोग अन्न और जल से खाते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं गीता में भी व्रत का महत्व बताया गया है, जहां भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि एकादशी का व्रत करने से मन, वचन, और क्रिया शुद्धि होती है, और यह आत्मा की उन्नति में मदद करता है।
इस दिन लोग विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करते हैं और भगवान की कृपा की मांग करते हैं। कृष्ण, भगवान विष्णु का अवतार, एकादशी के दिन भी मनाया जाता है।
शुभ तिथि
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 08 नवंबर को सुबह 08 बजकर 23 मिनट से शुरू होकर 09 नवंबर को सुबह 10 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी, जैसा कि पंचांग है। 9 नवंबर को व्रत रखा जाएगा। हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है गुरुवार को है। यह दिन शिव को समर्पित है। यह दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। और भगवान विष्णु के नाम पर एकादशी का व्रत भी रखा जाता है।
विधि विधान
कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठेंव्रत सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों में या घर पर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के दिव्य रूप केशव की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ की जाती है. हम भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को पंचामृत से अभिषेक करें, उन्हें पीला चन्दन, अक्षत, मोली, फल, फूल, मेवा, तुलसी दल और धूप-दीप से आरती करें. बाद में, एकादशी की कहानी सुननी चाहिए. जितना संभव हो, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करें. रात भर जागरण कर हरि कीर्तन करने से सभी दुःख दूर हो जाते हैं.
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एकादशी का मंत्र
भगवान विष्णु मंत्र
ॐ नमोः नारायणाय । ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय ।
शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म ।
वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकैकनाथम।।
माता लक्ष्मी मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नम।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद,
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्ये नम:।
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