Shardiya navratri
सनातन धर्म के अनुसार नवरात्रि पर्व अत्यंत ही खास माना जाता है, प्रत्येक वर्ष 4 नवरात्रि मनाई जाती हैं,(माघ ,चैत्र ,आषाढ़ औरआश्विन) जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो गुप्त नवरात्रि हैं शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि प्रत्यक्ष हैं अर्थात शारदीय नवरात्रि हर वर्ष आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि शुक्ल पक्ष से प्रारंभ होती है तथा नवमी तिथि को समापन किया जाता है|
SHARDIYA NAVRATRI तिथि -14 अक्टूबर मध्य रात्रि 11:24 PM से शुरू होगी और 16 अक्टूबर 12:32 AM पर समाप्त हो जाएगी ,अर्थात शारदीय नवरात्रि पर्व 2023 घटस्थापना का मुहूर्त का शुभारंभ-15 अक्टूबर रविवार से होगा तथा समापन 23 अक्टूबर सोमवार को किया जायगा |
24अक्टूबर मंगलवार को दशहरा (विजयादशमी ) पर्व मनाया जायेगा |
नवरात्रि में माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा होती है | देवी दुर्गा के ये रूप शास्त्रों में इस श्लोक द्वारा उल्लेखित किये गए हैं-
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम् ।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ॥
देवी भगवती माता दुर्गा जिन्हे आदिशक्ति जगत जननी जगदम्बा भी कहा जाता है, माता दुर्गा के नौ मुख्य रूप है जिनकी विशेष पूजा व साधना नवरात्रि के दौरान और बाकी दैनिक पूजा में भी विशेष रूप से ही करी जाती है |
SHARDIYA NAVRATRI के नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-आराधना का विधान है। नवदुर्गा के इन बीज मंत्रों का प्रतिदिन की देवी के दिनों के अनुसार मंत्र जाप करने से मनोरथ की सिद्धि प्राप्त होती है तथा विशेष फल की प्राप्ति होती है
NAVRATRI दैनिक पूजा के बीज मंत्र क्रमानुसार इस प्रकार हैं –
1-शैलपुत्री – ह्रीं शिवायै नम: ।।
2- ब्रह्मचारिणी – ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: ।।
3- चन्द्रघंटा – ऐं श्रीं शक्तयै नम: ।।
4- कूष्मांडा – ऐं ह्री देव्यै नम: ।।
5- स्कंदमाता – ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम: ।।
6- कात्यायनी – क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम: ।।
7- कालरात्रि – क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम: ।।
8- महागौरी – श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: ।।
9-सिद्धिदात्री – ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: ।।
Shardiya navratri प्रथम देवी माँ शैलपुत्री-
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नव दुर्गा में प्रथम देवी माँ शैलपुत्री हैं –मां दुर्गा पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं, ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं, पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण ही इनका नाम ‘शैलपुत्री’ है, इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं, इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है, यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं|
History Mata Shailputri माता शैलपुत्री की कहानी –
मां शैलपुत्री को सती के नाम से भी जाना जाता है ,अर्थात जब एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया तो इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान शिव और पुत्री सती को नहीं |देवी सती भलीभांति जानती थी कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं | देवी सती यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है और इसलिए वहां जाना उचित नहीं है। सती नहीं मानीं और बार बार यज्ञ में जाने का आग्रह करने पर शिव जी को माता सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी |माता सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहां पहुंची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है, सिर्फ उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। उनकी बहनों के व्यंग व उपहास थे और भगवन शंकर को भी तिरस्कृत कर रहीं थीं। राजा दक्ष ने भी भगवान शंकर का अपमान किया | ऐसा तिरस्कार देखकर माता सती को बहुत ठेस पहुंची | अपना और अपने पति का यह अपमान उनसे सहन न हुआ और सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए।दुख और गुस्से की ज्वाला में जलते हुए शिव जी ने उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। इसी सती ने फिर हिमालय के यहां जन्म लिया और माता शैलपुत्री कहलाईं |
माता शैलपुत्री जी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा हैं जिनका महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।
माता शैलपुत्री पूजा मंत्र –
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||
मंत्र का अर्थ –
“देवी शैलपुत्री वृषभ पर विराजित हैं तथा मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है”
मां शैलपुत्री जी की पूजा विधि Mata Shailputri Puja Day 1 –
Shardiya navratri महापर्व के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करना, पूजा घर की साफ-सफाई करनी चाहिए, इसके बाद एक चौकी स्थापित करके उसे गंगाजल से धोएं इसके बाद चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं |कलश स्थापना (घटस्थापना मुहूर्त) पर करें| उस पर माता रानी के सभी स्वरूपों को स्थापित करें.एक लाल चुनरी में 5 प्रकार के सूखे मेवे चढ़ाएं और देवी माँ को अर्पित करें और इसके साथ ही 5 सुपारी एक लाल कपड़े में बांधकर माता के चरणों में रख दें, मां शैलपुत्री को सफेद रंग के पुष्प अर्पित करें. मां शैलपुत्री को सफेद रंग का वस्त्र अर्पित करें,घाय के घी से बने मिष्ठानों का भोग लगाएं |अंत में घी का दीपक, धूप और कपूर जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर माता की आरती करें |
मां शैलपुत्री जी की आरती –
शैलपुत्री माँ बैल असवार।करें देवता जय जय कार॥
शिव-शंकर की प्रिय भवानी।तेरी महिमा किसी ने न जानी॥
पार्वती तू उमा कहलावें।जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू।दया करें धनवान करें तू॥
सोमवार को शिव संग प्यारी।आरती जिसने तेरी उतारी॥
उसकी सगरी आस पुजा दो।सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥
घी का सुन्दर दीप जला के।गोला गरी का भोग लगा के॥
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें।प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥
जय गिरराज किशोरी अम्बे।शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥
मनोकामना पूर्ण कर दो।चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥
अंत में सपरिवार देवी माँ का आशीर्वाद ग्रहण करें।
Shardiya navratri मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व और लाभ –
- नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री का ध्यान करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है.
- उनकी कृपा से भय दूर होता है, शांति और उत्साह मिलता है.
- मां शैलपुत्री अपने भक्तों को यश, ज्ञान, मोक्ष, सुख, समृद्धि आदि प्रदान करती हैं.
- मां शैलपुत्री जी की आराधना करने से इच्छाशक्ति प्रबल होती है .
- माता शैलपुत्री की पूजा से सक्रियता और मस्तिष्क का विकास होने लगता है .
- इनकी पूजा करने से हमारे अंतर्मन में उमंग और आनंद व्याप्त हो जाता है.
- माता शैलपुत्री मनुष्य के कायाकल्प को सशक्त और परमहंस बनाने का प्रथम सूत्र है.
- मां शैलपुत्री मानसिक स्थिरता देती हैं मां शैलपुत्री की पूजा करने से जीवन के समस्त संकट और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है .
JAY MATA DI
AUTHER:MR RAGHAV