बागेश्वर जिले के मल्ला दानपुर क्षेत्र के गांव हाल तक होली ( holi ) के रंगों से दूर रहते थे। उनका मानना है कि यदि वह होली त्योहार मनाते हैं तो स्थानीय देवता उन्हें दंडित करने के लिए प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकते हैं। सामा के लगभग 13 गांवों में न्याय पंचायत और सिमगढ़ी क्षेत्र के बास्ते आदि गांवों में ग्रामीण होली ( holi ) से दूर रहते हैं।
चन्द्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा।Holi
देवभूमि उत्तराखंड में कई जगह ऐसी है, जहां होली नहीं मनाई जाती है। यहां होली के रंगों से स्थानीय देवता क्रोधित हो जाते हैं। इसलिए यहां होली के रंगों से परहेज किया जाता है। कुछ जगह ऐसी है जहां माना जाता है कि होली ( holi ) मनाने से प्राकृतिक आपदाएं आती हैं।
धारचूला का तल्ला दारमा क्षेत्र
धारचूला तहसील के तल्ला दारमा क्षेत्र में स्थानीय देवता छिपला केदार की पूजा करने वाले ग्रामीण खुद को होली ( holi ) के रंगों से दूर रखते हैं। देवता चमकीले रंगों और कपड़ों से नाराज हो जाते हैं। धारचूला क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता और जिला पंचायत सदस्य र जीवन ठाकुर ने बताया कि इस क्षेत्र के लगभग सभी गांव छिपला देवता के प्रकोप से बचने के लिए रंगीन त्योहार नहीं मनाते हैं। यहां तक कि छिपलादेवता की पूजा के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले सिंदूर के निशान को दूध और चावल का उपयोग करके सफेद बनाया जाता है, जो फूल चढ़ाए जाते हैं। देवता ब्रह्म कमल के फूल हैं जो सफेद रंग के हैं।
मुनस्यारी का तल्ला जोहार क्षेत्र
पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी उपमंडल के तल्ला जोहार क्षेत्र के लगभग 12 गांव स्थानीय देवताओं के क्रोध के कारण होली ( holi ) का त्योहार नहीं मनाते हैं, जो चमकीले रंगों से क्रोधित हो जाते हैं। शंखधुरा गांव के ग्रामीण राजेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हमारे गांव के कुछ युवाओं ने, लगभग 40 वर्षों से, होली का त्योहार मनाने की कोशिश की। उसके बाद स्थानीय देवता एड़ी, आंचरी, बयाल और भुम्याल नाराज हो गए और अगले साल 10 लोगों की मौत हो गयी। उस घटना के बाद ग्रामीणों ने होली ( holi ) के रंगों से दूरी बना ली। मुख्यालय के जाख पंत आदि गांव में भी होली नही मनाई जाती
बागेश्वर का मल्ला दानपुर क्षेत्र
बागेश्वर जिले के मल्ला दानपुर क्षेत्र के गांव हाल तक होली के रंगों से दूर रहते थे। उनका मानना है कि यदि वह होली त्योहार मनाते हैं, तो स्थानीय देवता उन्हें दंडित करने के लिए प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकते हैं। सामा के लगभग 13 गांवों में न्याय पंचायत और सिमगढ़ी क्षेत्र के बास्ते आदि गांवों में ग्रामीण होली ( holi ) से दूर रहते हैं। मल्ला दानपुर क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता राम सिंह कोरंगा ने बताया कि सदियों से यही परंपरा रही है।
जानकार बोले
कुमाऊंनी संस्कृति के जानकर पद्मा दत्त पंत के अनुसार होली 14वीं या 15वीं शताब्दी में चंद राजा लाए थे। मुख्य रूप से ब्राह्मण पुजारियों द्वारा खेली जाती थी। यह एक हिंदू सनातन त्योहार था, इसलिए केवल उन क्षेत्रों में फैला जहां ब्राह्मण पु जारियों की पहुंच रही।
Frequently Asked Questions (FAQs)
- Which village in Uttarakhand is known for its unique Holi celebration where the deities become angry with the colors of Holi?
- The village known for its unique celebration where the deities become angry with the colors of Holi is located in Uttarakhand. However, specific details about the village, such as its name and location, may vary and would need to be verified through local sources or official records.
- Why is Holi not celebrated in this particular village?
- In this village, Holi is not celebrated due to the belief that the deities become angered by the colors used during the festival. As a result, residents refrain from observing festivities out of respect for their religious beliefs and traditions.
- What are the consequences of celebrating Holi in this village?
- Celebrating in this particular village may lead to displeasure or wrath from the deities, as per local beliefs. Residents typically avoid using colors or engaging in Holi-related activities to prevent any potential repercussions from angering the deities.