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माँ काली की आरती-10 महाविद्याओं में से प्रथम

Maa Kaali

माँ काली: प्रथम महाविद्या (About Maa Kaali)

माँ काली  हिन्दू धर्म की देवी दुर्गा की एक रूप है, जो भद्रकाली, श्यामा, कालिका, दक्षिणकाली, और चामुण्डा आदि नामों से भी जानी जाती है। माँ काली का रूप अत्यधिक उग्र और शक्तिपूर्ण होता है और विशेष रूप से तांत्रिक साधना में पूजा जाता है।

माँ काली का प्रतिष्ठान कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत में माँ काली मंदिर के रूप में बहुत प्रसिद्ध है, और यहां हर साल दुर्गा पूजा के दौरान विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं। माँ काली की पूजा और आराधना माँ दुर्गा के नौ दिनों के उत्सव के अंत में किया जाता है।

Maa Kaali
Maa Kaali

माँ काली की आरती  का अर्थानुसार हिंदी में निम्नलिखित है (Maa Kaali Aarti):

जय काली माँ! जय काली माँ! जय काली माँ! जय काली माँ!

तेरी आरती, माँ, जो कोई नर गावे। कहते संतन में अंत काल, भव सागर तर जावे।

जो कोई नर तुझको ध्यावे। माँ, विद्या, दान, धन, ज्ञान, बल, रूप, लक्ष्मी का रूप। जो कोई नर तुझको ध्यावे।

रूप, लक्ष्मी का रूप, लक्ष्मी का रूप।

माँ, श्यामला की माँ तु अति ही अनुप। देवों में तु ही विशेष, तु ही सुख-सागर कुप।

माँ, सबकी तु ही संकट-हारिणी। तु काली मैया के रूप के, काली के दासी हारी।

काली के दासी हारी, काली के दासी हारी।

तु काली मैया के रूप के, काली के दासी हारी।

माँ काली की आरती को गाते समय, विश्वास और श्रद्धा के साथ माँ काली की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह आरती माँ काली की महिमा और कृपा के प्रतीक के रूप में गाई जाती है। 

माँ काली के विषय में कुछ मुख्य बातें –

  • नाम : माता कालिका
  • शास्त्र : त्रिशूल और तलवार
  • दिन : अमावस्या
  • वार : शुक्रवार
  • ग्रंथ : कालिका पुराण
  • मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्लीम परमेश्वरी कालिके स्वाहा

माँ काली की कहानी (Story of Maa Kali):

एक बार दारुक नाम के पापी असुर ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करके प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा से पाए वरदान के कारण दारूक अत्यंत बलवान हो गया। वह देवताओं और ब्राह्मणों को परेशान करने लगा।

उसने सभी धार्मिक अनुष्ठान, हवन, यज्ञ बंद करवा दिए और स्वर्गलोक पर अधिपत्य कर लिया। सभी देवता विचलित होकर ब्रह्मा और विष्णु के पास सहायता के लिए गए। ब्रह्मा जी ने बताया कि दारूक असूर का नाश केवल स्त्री के हाथों हो सकता है। सभी बड़े देवता भी उससे युद्ध में हार चुके थे। अंत में यह निर्णय लिया गया कि भगवान शिव की पत्नी पार्वती दारूक असुर का वध करें ।

भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर भयानक और प्रचंड मां काली को जन्म दिया। उनका शरीर काले रंग का था। मां काली के माथे पर तीसरा नेत्र और चंद्र रेखा थी। उनके हाथों में त्रिशूल और नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र थे।

मां काली के प्रचंड रूप को देखकर सभी देवता थरथर कांपने लगे और वहां से भागने लगे। युद्ध में दारूक असुर मां काली से पराजित हुआ और इस तरह उस दुष्ट का अंत हुआ। मां काली के भयानक रूप से चारों तरफ अग्नि की लपटें उत्पन्न हो गई।

मां काली के क्रोध को सिर्फ भगवान शिव ही रोक सकते थे। इसलिए उन्होंने एक बालक का अवतार लिया। भगवान शिव श्मशान पहुंचे और वहां पर बालक के रूप में लेट कर रोने लगे। छोटे बालक को देख कर मां काली का क्रोध शांत हो गया।

उनके हृदय में वात्सल्य भावना जागृत हो गई। उन्होंने शिव रूपी उस छोटे बालक को उठा लिया और अपने स्तनों से दूध पिलाने लगी इस प्रकार शिव जी ने उनके क्रोध को पी लिया।

इस तरह मां काली का प्रचंड और भयानक क्रोध शांत हुआ। उसके बाद मां काली मूर्छित हो गई। उन्हें होश में लाने के लिए भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया। होश में आने पर वे पुनः देवी पार्वती के रूप में आ चुकी थी।

वह भी भगवान शिव का नृत्य देख कर नृत्य करने लगी जिस कारण उन्हें “योगिनी” भी पुकारा जाता है।  मां काली ने महिषासुर, चंड मुंड, धूम्राक्ष, रक्तबीज, शुंभ निशुंभ जैसे राक्षसों का वध किया। माता कालिका दसमहाविद्या में से एक हैं मां काली।

माता काली के तीन प्रसिद्ध मंदिर (3 Maa Kali Famous Temples):

कोलकाता का काली मंदिर

यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है जो कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास बना हुआ है। इस क्षेत्र को कालीघाट भी कहते हैं। इस स्थान पर देवी सती के दाहिने पैर की 4 उंगलियां गिरी थी। यह मन्दिर देवी सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है।

मां गढ़ कालिका मंदिर

यह प्रसिद्ध मंदिर उज्जैन के कालीघाट में स्थित है। यहां पर प्रसिद्ध कवि कालिदास मां कालिका की पूजा करते थे। यहां आने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। यह मन्दिर उज्जैन क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है।

पावागढ़ शक्तिपीठ मंदिर

यह मन्दिर गुजरात की ऊंची पहाड़ियों में बसा हुआ है। यहां पर मां काली की पूजा महाकाली के रूप में होती है। यहां देवी  सती का वक्ष स्थल गिरा था। यह मंदिर वडोदरा शहर से 50 किलोमीटर दूर है।

जानकारी के लिए जुड़े रहे Devdham yatra से।

FAQs:

Q1: काली माँ कौन हैं?

A1:काली माँ हिन्दू धर्म की देवी हैं, जिन्हें शक्ति और प्रकृति की प्रतीक के रूप में पूजा जाता है.

Q2: काली माँ के क्या महत्वपूर्ण गुण हैं?

A2:काली माँ को शक्ति, शम, और संहारकारिणी शक्तियों का प्रतीक माना जाता है. वे अद्वितीय, निर्मल और परम देवी मां भैरवी हैं.

Q3: काली माँ के क्या अलग-अलग रूप हैं?

A3:काली माँ के अनेक रूप हैं, जैसे कि महाकाली, भद्रकाली, चिन्मस्तिका, और त्रिपुरा सुंदरी, जो विभिन्न गुणों और स्वरूपों में प्रकट होती हैं.

Q4:काली माँ की पूजा कैसे की जाती है?

A4: काली माँ की पूजा में आमतौर पर काली माँ की मूर्ति के सामने पूजा की जाती है, और विशेष प्रार्थनाएँ और भजन गाए जाते हैं. उपासक धूप, दीप, फूल, और फल भी चढ़ाते हैं.

Q5: काली माँ के क्या प्रसिद्ध मंदिर हैं?

A5: काली माँ के कई प्रमुख मंदिर हैं, जैसे कि कालीघाट मंदिर (कोलकाता), काली मंदिर (वारणसी), और ज्वालामुखी देवी मंदिर (हिमाचल प्रदेश).

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