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श्री गणेश आरती

श्री गणेश

श्री गणेश

श्री गणेश, हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता में से एक हैं और उन्हें ‘विघ्नहर्ता’ या ‘विघ्नराज’ के रूप में जाना जाता है, जिनका मतलब होता है कि वे समस्त विघ्नों को दूर करने वाले हैं। वे ज्ञान और बुद्धि के प्रतीक के रूप में पूजे जाते हैं और हमें समस्याओं से मुक्ति प्रदान करने के लिए प्राप्त करने में मदद करते हैं।

श्री गणेश को एक भगवान के रूप में नहीं माना जाता है, बल्कि वे देवी-देवताओं के परिवार के सदस्यों के रूप में समझे जाते हैं। वे पार्वती माता और भगवान शिव के पुत्र हैं।

श्री गणेश के चित्र और मूर्तियाँ विभिन्न रूपों में पाई जाती हैं, लेकिन उनकी विशेष पहचान उनकी एक बड़ी गोल मूढ़ वक्रदंड है, जिसमें वे एक मूढ़ गण्ड के साथ बैठे होते हैं। उनके एक छोटे छाती, मोटी बढ़ी पेट और एक पशु हाथि की तरह के एक गज के सिर का चित्रण होता है।

श्री गणेश की पूजा और आराधना भारत में बड़े धैर्य और भक्ति के साथ की जाती है, विशेष रूप से उनके जन्मोत्सव ‘गणेश चतुर्थी’ पर मनाए जाते हैं। इस दिन भगवान श्री गणेश की मूर्तियों को घरों में पूजा जाता है और लक्ष्मी और सरस्वती के साथ मिलकर उनकी आराधना की जाती है। इस त्योहार के दौरान भगवान श्री गणेश के चालने और आशीर्वाद पाने की आशा की जाती है ताकि जीवन में समृद्धि और सफलता प्राप्त हो सके /

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भगवान गणेश की आरती:

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।
एक दंत दयावन्त, चार भुजा धारी।
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुआन का भोग लगे, संत करे सेवा।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।
अंधन को आंधी ला, कुफन में कढ़का ला।
बांसी की धुन सुना के, गणेश जी का नाम।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।
अंधन को आंधी ला, कुफन में कढ़का ला।
बांसी की धुन सुना के, गणेश जी का नाम।
शुभ गुण मंगल दायक, जय गिरिजापति दिनदयाल।
जय गिरिजापति दिनदयाल।“`

गणेश जी के उपास्य स्लोगन (मंत्र) :

  1. “ॐ गं गणपतये नमः” (Om Gam Ganapataye Namah): यह गणेश जी का मूल मंत्र है और उनकी आराधना के लिए प्रसिद्ध है.
  2. “वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥” ( Vakratunda Mahakaya Suryakoti Samaprabha। Nirvighnam Kuru Me Deva Sarvakaryeshu Sarvada॥)
  3. “गजाननं भूतगणादि सेवितं। कपित्थ जम्बूफलसार भक्षितम्। उमासुतं शोकविनाशकारणं। नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।” ( Gajananam Bhootaganadi Sevitam। Kapittha Jambufalasara Bhakshitam। Umaasutam Shokavinaashakaaranam। Namaami Vighneshwarapaadapankajam।)
  4. “श्री गणेशाय नमः” (Shri Ganeshaya Namah): यह एक सामान्य गणेश मंत्र है, जिसका उद्घाटन और पूजा में प्रयोग किया जा सकता है.
  5. “गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया” (Ganpati Bappa Morya, Mangal Murti Morya): यह मंत्र गणपति बप्पा की पूजा और उनका आगमन मनाने के लिए उपयोगी होता है, विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के अवसर पर.

ये मंत्र गणेश जी की आराधना और पूजा के समय उच्चारण के लिए उपयोगी होते हैं और उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं.

श्री गणेश जी की पूजा विधि :

सामग्री:

  1. गणेश मूर्ति या फोटो
  2. दूप बत्ती और दीपक
  3. अगरबत्ती
  4. पुष्प (फूल)
  5. धूप (धूना)
  6. गुढ़ और तिल के लड्डू
  7. फल (फलों की पूर्ति)
  8. गांध (सुंदर सुगंधित पस्त या इत्र)
  9. गंगाजल या पानी
  10. पूजा की थाली
  11. पूजा का कपड़ा या आसन
  12. अक्षत (राईस)
  13. कलश
  14. चावल
  15. दूर्वा (दर्भ) घास
  16. पूजा की किताब या मंगलाचरणा की पाठ के लिए तो किताबें और मन्त्र

पूजा की विधि:

  1. सबसे पहले, पूजा करने का स्थान साफ और शुद्ध करें, और फूलों के वास्त्र या पूजा के आसन पर बैठें।
  2. अपने हाथों को धोकर शुद्ध करें और धूप बत्ती या अगरबत्ती जलाएं।
  3. गणेश मूर्ति या फोटो को सजाकर रखें।
  4. गंगाजल या पानी के कलश में पानी भरकर उसमें अक्षत, चावल, दूर्वा घास, गुढ़ और तिल के लड्डू रखें। इस कलश को गणेश जी के सामने रखें।
  5. दीपक को दिखाकर लिट करें और धूप की और बार-बार बल.

FAQs

Q1. गणेश जी का इतिहास क्या है?

Ans. पौराणिक मत के अनुसार उनका जन्म सतुयग में हुआ था. उत्तरकाशी जिले के डोडीताल को गणेशजी का जन्म स्थान माना जाता है.

Q2.गणेश के 8 अवतार कौन से हैं?

Ans. श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त होता है। इन अवतारों की संख्या आठ बतार्इ जाती है आैर उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट, विघ्नराज, और धूम्रवर्ण

Q3.गणेश जी की दो पत्नियां क्यों थीं?

Ans. एक कहानी के अनुसार, गणेश को अपने हाथी के सिर के कारण विवाह के लिए लड़की ढूंढने में कठिनाई हुई , और इसलिए उन्होंने अन्य देवताओं के विवाह समारोहों में परेशानी पैदा की। देवताओं ने ब्रह्मा से मदद मांगी, जिन्होंने तब रिद्धि और सिद्धि का निर्माण किया और उनका विवाह गणेश से कर दिया।

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